*नाटक के बारे में*
‘विठाबाई’ यानी तमाशा के मंच पर एक प्रतिष्ठित नाम, जो अपनी एक अनमिट छाप छोड़कर गई। तेरह साल की उम्र से ही घुंघरू बांधकर कलाकार के रूप में दर्शकों पर अपना प्रभाव छोड़ने वाली लावणी सम्राज्ञी…नृत्यांगना! भाऊ खुडे नारायणगावकर का पूरा परिवार लोकनाट्य तमाशा में काम करता था, जिससे उन्हें नृत्य की शुरुआत घर में ही मिली।
विठाबाई का सावला, लेकिन आकर्षक चेहरा, मीठी आवाज और अद्वितीय अभिनय, इस संयोजन से झिलमिलाती विठाबाई की जीवित कथा ने सामान्य जनता और दर्शकों को आकर्षित किया। आलोचनाओं की परवाह न करते हुए, उनके दर्शकों ने विठाबाई को ‘तमाशासम्राज्ञी’ की उपाधि दी।
इस नाटक में विठाबाई के जीवन के कुछ महत्वपूर्ण प्रसंग आपके सामने प्रस्तुत किए गए हैं।
विठाबाई का जीवन अत्यधिक संघर्षपूर्ण था, लेकिन मंच पर अपने नृत्य, अभिनय और गायन में उन्होंने कभी भी अपनी कठिनाइयों को दर्शकों को महसूस नहीं होने दिया। पुरुषों की दुनिया में आत्मविश्वास और साहस के साथ कदम रखती विठाबाई अपनी ज़िन्दगी में ही एक किंवदंती बन गई थीं।
कला की एक उपासिका का यह संघर्षपूर्ण सफर इस नाटक में दर्शाने का प्रयास किया गया है।
*निर्देशक के बारे में:*
प्रो. डॉ. मंगेश बनसोड ने 1991 में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद से नाट्यशास्त्र में बी.ए. करने के बाद, 1993 में मुंबई विश्वविद्यालय से मराठी (तौलनिक साहित्य अध्ययन) विषय में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। 1995 में उन्होंने शैक्षणिक विज्ञान में बी.एड. और 2004 में मुंबई विश्वविद्यालय से ‘मराठी लोकनाट्य तमाशा’ विषय पर पीएच.डी. प्राप्त की। उन्होंने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद से नाट्यशास्त्र में डिप्लोमा भी पूरा किया।
पिछले 30 वर्षों से उन्होंने कई मराठी और हिंदी नाटकों, धारावाहिकों और फिल्मों में काम किया है और कई प्रसिद्ध निर्देशकों के साथ अभिनय और निर्देशन का व्यापक अनुभव हासिल किया है।
उनकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें हैं: ‘निशाणी डावा अंगठा’ (नाटक), ‘रंगविधा’(नाट्यविषयक), ‘मी येणाऱ्या पिढीची दिशा घेऊन फिरतोय’ (काव्य संग्रह), ‘तमाशा: रूप आणि परंपरा’ (शोध ग्रंथ), और ‘उष्टं’ (अनुवाद)।
डॉ. मंगेश बनसोड ने ‘विच्छा माझी पुरी करा’, ‘लोटन’, ‘निशाणी डावा अंगठा’, ‘मी लाडाची मैना तुमची’, ‘मैं लाडली मैना तेरी’ और ‘गांधी-आंबेडकर’ जैसे नाटकों का निर्देशन किया है। उन्होंने अकादमी के लिए 12 से अधिक नाटकों का निर्माण भी किया है। शिक्षा, परिवहन समस्याओं जैसे सामाजिक विषयों पर उन्होंने वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंट्री) भी बनाए हैं।
उन्हें मुंबई विश्वविद्यालय का 2005 का कै.प्रा. अ.का.प्रियोळकर पुरस्कार, कवी अरुण काळे स्मृती सम्यक पुरस्कार, ‘उष्टं’ के अनुवाद के लिए सूर्यकांता बाई पोटे पुरस्कार, पद्मश्री दया पवार प्रतिष्ठान का ‘ग्रंथाली’ द्वारा पुरस्कृत ‘बलुतं’ पुरस्कार और महात्मा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
प्रो. डॉ. मंगेश बनसोड 2006 से मुंबई विश्वविद्यालय के अकादमी ऑफ थिएटर आर्ट्स में अध्यापन कर रहे हैं और सितंबर 2015 से मार्च 2019 तक उन्होंने अकादमी के कार्यकारी निदेशक के रूप में कार्यभार संभाला। जुलाई 2022 में एथेंस (ग्रीस) में आयोजित 18वें ‘मेकिंग ऑफ थिएटर’ अंतरराष्ट्रीय नाट्य कार्यशाला में उन्होंने प्रशिक्षक के रूप में भाग लिया और 36 देशों के छात्रों को ‘तमाशा’ सिखाया। उन्होंने नाट्य कार्यशालाओं के लिए इटली, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, फ्रांस और दुबई जैसे देशों का भी दौरा किया है। वर्तमान में वे अकादमी में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।
*निर्देशक का वक्तव्य*
‘विठाबाई’ यह नाटक मैंने अकादमी के पहले वर्ष के विद्यार्थियों के लिए बनाने का निर्णय लिया, जिसका शुद्ध और निखालस उद्देश्य एक ही था कि इस नाटक के माध्यम से छात्रों को तमाशा की अभिनय शैली और प्रस्तुतिकरण से परिचित कराया जा सके। तमाशा यह कला मूलतः बहुजन समाज के कलाकारों द्वारा विकसित की गई कला है, यह सबके सामने प्रमाणित है और शायद इसी कारण, महाराष्ट्र के सामान्य जनों में अत्यधिक लोकप्रिय होने वाली इस कला पर तथाकथित अभिजन वर्ग द्वारा ग्राम्यता… अश्लीलता… के कई आरोप लगाए गए हैं। भारतीय सामाजिक दृष्टिकोण से विचार करते हुए, शीलता और अश्लीलता जैसी संकल्पनाएँ अत्यंत सापेक्ष हैं।
तमाशा का असली रूप वह था और आज भी वही है, यह सबको स्वीकार करना होगा। इसे नकारा नहीं जा सकता। मूल रूप से, तमाशा की भाषा, उसमें आने वाले हास्य, भाषाई चुटकुले, समकालीन राजनीतिक और सामाजिक व्यंग्य, इन सबके माध्यम से तमाशा में हास्य रचनात्मक रूप से उत्पन्न किया जाता है। इस हास्य के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर समाज में घटित होने वाली अच्छी और बुरी घटनाओं पर कटाक्ष किया जाता है। इस संदर्भ में, पारंपरिक तमाशा प्रस्तुतिकरण को उसके असली रूप में छात्रों को दिखाने का प्रयास किया गया है, जिसमें गण, गवळण, बतावणी और लावणी जैसे पारंपरिक तत्व शामिल किए गए हैं। अंततः, तमाशा की पारंपरिक शैली को छात्रों तक पहुंचाना यहाँ का मुख्य उद्देश्य है ।
*लेखक के बारे में*
–संजय जीवने*
*संजय शांताबाई आनंदराव जीवने*
– *संस्थापक:* भारतीय दलित रंगभूमि, नागपुर (1990)
– *संस्थापक:* अंकुर मानव समाज उत्थान केंद्र, नागपुर (1992)
– *संस्थापक:* बुद्धिस्ट आर्ट अकादमी, नागपुर (1995)
– *संस्थापक:* अश्वघोष फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट (2006)
– *संस्थापक:* सेलुलॉइड फिल्म्स, बा फिल्म्स (2009)
*पुरस्कार और सम्मान:*
– महाराष्ट्र शासन की राज्य नाट्य स्पर्धा में लेखन, निर्देशन और अभिनय के लिए पाँच बार रजत पदक से सम्मानित।
– ‘पैदागीर’ (निर्देशन, 1991)
– ‘नक्सलाइट’ (निर्देशन और अभिनय, 1999)
– ‘पाटा-वरवंटा’
*एकांकी (लघु नाटक) लेखन एवं निर्देशन:*
– ‘पैदागीर’, ‘युगांत’, ‘सिद्धार्थ गौतम’, ‘रेडक्रॉस’, ‘टोळी’, ‘टोली’, ‘सिंहनाद’, ‘नक्सलाइट’, ‘छुपा अजेंडा’, ‘कांतीज्योती’, ‘उलगुलान ब्लैक टाइगर’, ‘खैरलांजी’, ‘पटाचारा संघर्ष’, ‘टेररिस्ट’ आदि।
*एकल अभिनय प्रस्तुतियाँ:*
– ‘भूख’, ’15 अगस्त’, ‘मैं अभी जिंदा हूं’, ‘टेररिस्ट’, ‘फूलन’, ‘मजदूर’, ‘मैं रमाबाई आंबेडकर बोल रही हूं’, ‘मैं डॉ. आंबेडकर बोलता हूं’, ‘मैं ज्योतिराव फुले बोलता हूं’, ‘क्रांतिमाता’, ‘खैरलांजी का भूत भूतमांगे’, ‘कबीर’, ‘घोटाला’ आदि।
*तीन महानाट्य प्रस्तुतियाँ:*
– ‘धम्मपथ’ – लेखन, निर्देशन
– ‘युगयात्रा’ – लेखक: म.भी. चिटणीस, निर्देशन: संजय जीवने
– ‘सम्राट अशोक’ – लेखन, निर्देशन
*प्रकाशित नाट्यकृतियाँ:*
– ‘नक्सलाइट’, ‘पटाचारा’, ‘मैं संपूर्ण भारत बौद्धमय करूंगा’, ‘आरक्षण’ आदि।
*प्रमुख पुरस्कार:*
– *2001:* चौकट द्वारा ‘विदर्भ भूषण पुरस्कार’
– *2004:* अखिल भारतीय मराठी नाट्य परिषद द्वारा ‘श्रेष्ठ रंगकर्मी पुरस्कार’
– *2006:* ‘जीवक साहित्य पुरस्कार’
– *2006:* अखिल भारतीय मराठी नाट्य परिषद, नागपुर शाखा द्वारा ‘राम गणेश गडकरी स्मृति दिवस सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार’
संजय जीवने एक प्रख्यात लेखक, अभिनेता, निर्माता और निर्देशक हैं, जिन्होंने भारतीय रंगमंच पर अपनी विशेष पहचान स्थापित की है।
लेखक की लिखित अनुमती :
*‘अकॅडमी ऑफ थिएटर आर्ट्स ’ के बारे में*
अकॅडमी ऑफ थिएटर आर्ट्स की स्थापना सन 2003 में हुई। मुंबई शहर देश के नाट्य क्रियाकलापों का मुख्य केंद्र होने के बावजूद, मुंबई में नाट्य प्रशिक्षण संस्थाओं की कमी को ध्यान में रखते हुए मुंबई विश्वविद्यालय ने यह अकॅडमी शुरू की है। अकॅडमी में नाट्यशास्त्र का दो साल का पूर्णकालिक सर्वसमावेशी स्नातकोत्तर डिग्री पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है। यह पाठ्यक्रम एकात्मिक पाठ्यक्रम है, जिसमें नाट्य साहित्य (पश्चिमी, पूर्वी और भारतीय), अभिनय, निर्देशन, शारीरिक अभिव्यक्ति और चाल, विभिन्न मार्शल आर्ट्स, योग, संगीत, आवाज और संवाद, पारंपरिक और आधुनिक नृत्य जैसे विविध सैद्धांतिक और व्यावहारिक अध्ययन शामिल हैं। प्ले एनालिसिस और प्ले राइटिंग, मेक-अप, लाइट डिज़ाइन, सेट डिज़ाइन, थिएटर आर्किटेक्चर, कॉस्च्युम डिज़ाइनिंग आदि पाठ्यक्रम भी अकॅडमी में पढ़ाए जाते हैं।
अकॅडमी ऑफ थिएटर आर्ट्स के विद्यार्थियों को विभिन्न शैलियों के नाटक देखने और अध्ययन करने के लिए तथा विभिन्न नाट्य महोत्सव, प्रस्तुतियाँ और चर्चासत्र आयोजित करने के अवसर प्रदान किए जाते हैं। राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्ध विशेषज्ञों को आमंत्रित कर प्रमुख रंगकर्मियों के साथ संवाद करने के मौके भी विद्यार्थियों को दिए जाते हैं।
अकॅडमी ऑफ थिएटर आर्ट्स ने अब तक साठ से अधिक नाटकों का निर्माण किया है, जिनमें प्रमुख रूप से ‘मध्यम व्यायोग’ (निर्देशक प्रो. वामन केंद्रे), ‘जनशत्रू’ (दि. विजय केंकरे), ‘पोस्टर’ (दि. जयदेव हट्टंगडी), ‘मुखवटे’ (दि. चंद्रकांत कुलकर्णी), ‘वेधपश्य’ (दि. प्रो. वामन केंद्रे), ‘सूर्याची पिल्ले’ (दि. दामू केंकरे), ‘दि. मोमेंट्स’ (दि. रामचंद्र शेळके), ‘खेळ’ (दि. मिलिंद इनामदार), ‘मोहनदास’ (दि. वामन केंद्रे), ‘लोटन’ (दि. डॉ. मंगेश बनसोड), ‘अजिंठा’ (दि. मिलिंद इनामदार), ‘हृदय’ (दि. चंद्रकांत कुलकर्णी), ‘मी लाडाची मैना तुमची’ (दि. डॉ. मंगेश बनसोड), ‘अंधा युग’ (दि. मिलिंद इनामदार), ‘विरासत’ (दि. विजय केंकरे), ‘निशाणी डावा अंगठा’ (दि. डॉ. मंगेश बनसोड) इत्यादि प्रमुख हैं। इसके अलावा, अकॅडमी के विद्यार्थियों ने अब तक 100 से अधिक क्लासरूम प्रोडक्शन्स का निर्माण, निर्देशन और प्रस्तुतिकरण किया है।
कलाकारों कि सूची
विठाबाई – प्राची गोंगले
म्हातारी-अंकिता सावंत
लहान विठा- अर्चना शर्मा
भाऊ- असिफ कुरेशी
बापू-संकेत कटाळे
माने माउशी -रोहित ताराहर
अण्णा मर्चंड- सुनिल दळवी
शालन- प्रार्थना अशोक
केशर-उत्कर्षा साने
वहिनी-साक्षी मांजरेकर
नेता-दीपक मिश्रा
सैनिक-तपीक जयपुरिया
म्हातारा-कार्तिक डांगरोसा
प्रधान –सिद्धांत सोनावने
मेश्राम –नितीन पावरा
हुमणे- सुधांशू भांडारकर
कार्यकर्ता –प्रांजल उपाध्याय
तरुण –प्रांजल उपाध्याय
वादक –कार्तिक डांगरोसा
कलावंतीन –प्रियांका शर्मा ,आंचल रस्तोगी ,रिद्धी जोशी ,ऋतुजा ढिगे
बतावनी –पुष्कर कुलकर्णी ,सिद्धांत सोनावने ,संकेत कटाळे,रोहित ताराहर
गवळणी –प्राची ,ऋतुजा,साक्षी,अर्चना ,प्रार्थना ,उत्कर्षा
मंच पर
विठाबाई – प्राची गोंगले
म्हातारी-अंकिता सावंत
लहान विठा- अर्चना शर्मा
भाऊ- असिफ कुरेशी
बापू-संकेत कटाळे
माने माउशी -रोहित ताराहर
अण्णा मर्चंड- सुनिल दळवी
शालन- प्रार्थना अशोक
केशर-उत्कर्षा साने
वहिनी-साक्षी मांजरेकर
नेता-दीपक मिश्रा
सैनिक-तपीक जयपुरिया
म्हातारा-कार्तिक डांगरोसा
प्रधान –सिद्धांत सोनावने
मेश्राम –नितीन पावरा
हुमणे- सुधांशू भांडारकर
कार्यकर्ता –प्रांजल उपाध्याय
तरुण –प्रांजल उपाध्याय
वादक –कार्तिक डांगरोसा
बतावनी –पुष्कर कुलकर्णी ,सिद्धांत सोनावने ,संकेत कटाळे,रोहित ताराहर
कलावंतीन –प्रियांका शर्मा ,आंचल रस्तोगी ,रिद्धी जोशी ,ऋतुजा ढिगे
गवळणी –प्राची ,ऋतुजा ,साक्षी अर्चना ,प्रार्थना ,उत्कर्षा
मंच परे
लेखक – संजय जीवने
दिग्दर्शक- प्रो.डॉ. मंगेश बनसोड
सहाय्य-प्रियांका सितासावाद
नैपथ्य -जयंत देशमुख
नृत्य दिग्दर्शन- छायाताई खुटेगावकर
संगीत संयोजन -आशुतोष वाघमारे
वाद्य वृंद/साजिंदे-
हर्मोनियम- विशाल पारदे
बासुरी- हरीश कांबळे
ढोलकी- रत्नाकर शिंदे
गायिका – वृषाली घाणेकर,तेजस्विनी इंगळे
रंगभूषा-उलेश खंदारे
प्रकाशयोजना-रुणाल कोलकणकर